एनआईए , एसीबी और ईडी के करवाई के बावजूद नहीं है डर , क्यों विकास योजनाओं में कमीशन लेना अपना अधिकार समझते है अधिकारी व कर्मी ??

!! सुदूरवर्ती गाँवो का हालात और योजनाओं का क्रियान्वयन देखकर ही भ्रष्टाचार का पोल खोल कर रख देता है इसके बावजूद कुम्भकर्णीय नींद में सरकारी सिस्टम !!

चतरा :- पंचायती राज व्यवस्था के तहत सरकार मनरेगा योजना को चला रही है ताकि गांवो के विकास के साथ- साथ गरीब मजदूरों को रोजगार मिले पर अधिकारी से लेकर कर्मी व बिचौलियों की मिलीभगत से मनरेगा योजना का कियान्वयन धरातल पर कम और कागजों पर ज्यादा यानी दीमक की भांति खोखला किया जा रहा है । मनरेगा योजना आने से पहले पुराने सरकारी रोज़गार कार्यक्रमों में पैदा हुए संकट जैसे, जेआरवाई, काम के बदले भोजन, आकाल राहत कार्य आदि केवल काग़ज़ों पर ही होते थे । इसलिए सरकार ने गांव और मजदूरों के हितों को ध्यान में रखते हुए मनरेगा में काम की गारंटी , अधिकार पारदर्शिता और जवाबदेही का पूरा खाका तैयार किया गया पर सिस्टम में शामिल नौकरशाह ने गांव का विकास और मजदूरों के हक छिनने में बिचौलियों को मदद पहुंचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा है । इसी का नतीजा है कि मजदूरों का पलायन हो रहा है ।

जानिए पिछले तीन दशकों से चतरा का हाल , आखिर कौन है इसके दोषी ?।

चतरा जिला का भगौलिक दृष्टिकोण नदी,जंगलों और पहाड़ों से चारों ओर से घिरा हुआ है । यह जिला हमेशा अवैध कारोबार के लिये बदनाम रहा है । कभी कत्था कारोबार के लिए मशहूर तो कभी नक्सलवाद के लिए बदनाम वही हाल के दशक की बात करें तो अफीम, पत्थर ,लकड़ी और शराब के साथ साथ सरकारी योजनाओं में लूट , घपला , घोटाला , फर्जीवाड़ा और कमीशनखोरी के कारण यह जिला बदनाम व हमेशा सुर्खियों में रहता है । उग्रवादी ,नशे का सौदागर से लेकर पदाधिकारी , जनप्रतिनिधी, स्थानीय पुलिस व बिचौलियों के लिए यह जिला सबसे अच्छा चारागाह माना जाता है ।

जिले में नक्सलवाद , अफीम , शराब , लकड़ी की तस्करी भ्रष्टाचार ,गमन , घपले घोटाले चरम सीमा पर व्याप्त है । यही वजह है कि इस जिले को पिछड़ा जिला के श्रेणी में माना जाता है । इस जिले में प्रचुर मात्रा में खनिज संपदा है । इस जिले में अशिक्षा , गरीबी तथा रोजगार के समुचित साधन नहीं होने के कारण ही लूट का केन्द्र बनकर रह गया है । यहां एक बार जो अधिकारी आते है वह बार-बार आना चाहते है । यही वजह है कि अधिकांश विभागों में दोबारा पदस्थापन करवाने में कई अधिकारी कामयाब रहें है ।

इस जिले में आज भी सभी प्रखण्डों में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है । किसान मजदूर व असहाय गरीबो के लिए इस जिले में कई सारी योजनाएं विशेष तौर पर चलाया जा रहा हैं ताकि सभी लोगों को संसाधन प्रदान कर बेरोजगारी को दूर किया जा सके और मजदूरों का पलायन रोका जा सके । इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार विशेष योजनाएं चला रही हैं , जैसे सिंचाई के लिए तालाब , सोलर सिस्टम सिंचाई योजना ,चेकडैम , लिफ्ट एरिगेशन , मछली पालन , शुगर पालन , मुर्गी पालन , बकरी पालन,बत्तक पालन ,सोलर सिस्टम जल मीनार , वृक्षारोपण आवास योजना , सड़क निर्माण आदि इन सारी योजनाओं का क्रियान्वयन होता तो जरूर है पर अधिनाकांश योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है । सबसे मजे की बात यह है कि योजना क्रियान्वयन से पहले अधिकारियों का कमीशन का हिस्सा तय होने के बाद ही , कार्य प्रारंभ होता है । इसका एक उदाहरण नहीं बल्कि सैकड़ो उदाहरण समय-समय पर मिलता रहा है । हरेक योजना में कमीशन की राशि ली जाती है , यह सर्वविदित है । नाम नहीं छापने के शर्त पर ठेकेदार तथा लाभुकों से मिली जानकारी के अनुसार सामान्य तौर पर 20% से 30% तक का कमीशन योजनाओं के क्रियान्वयन में अधिकारी व कर्मियों के द्वारा ले लिया जाता है । हालांकि जिस समय आधा दर्जन से अधिक नक्सली संगठनों का वर्चस्व था उस समय 5% से लेकर 10%तक की राशि बतौर लेवी के रूप में देना पड़ता था । कुछ वर्षों से नक्सलवाद में कमी आने से संवेदकों को राहत मिली है । अधिकारियों का कमीशन करीब 15% से 20% तक है । टेंडर वर्क भी इससे अछूता नहीं है । मनरेगा व 14वें वित्त से बनने वाली , सड़क , सोलर जलमीनार , बिरसा मुंडा आवास , प्रधानमंत्री आवास ,नाली व ग्रामीण सड़के सभी योजनाएं इसी दायरे में क्रियान्वित कराए जा रहें है । इन्ही सब कारणों की वजह से कई सारी योजनाएं अधूरा पड़ा है या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है और आम जनता को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया है । एक तरफ़ ACB की टीम चतरा में लगातार करवाई कर दर्जनों घूसखोरों को सलाखों के पीछे भेजने का काम किया है । तो वहीं दूसरी ओर अपने आदतों से बाज नहीं आने वाले कई अधिकारी व कर्मी के कारण घूसखोरी चरम पर है । आश्चर्य की बात तो यह है कि कई दागी कर्मी जिनके विरुद्ध विभागीय करवाई तथा एसीबी के करवाई के बाद पुनः पद पर बहाल होंते ही मलाईदार विभाग में पोस्टिंग कर दिया गया है । हालांकि उपायुक्त रमेश घोलप ने अंतिम व्यक्ति तक योजनाओं का लाभ पहुँचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे है । सबसे मजे की बात यह है कि अंतिम व्यक्ति तक लाभ नहीं पहुंचाने में सबसे बड़ा योगदान स्थानीय सरकारी कर्मी का होता है । मामला कई बार उजागर हुआ पर दोषियों से गमन की राशि ट्रेजरी में जमा करवाकर उन्हें दोष मुक्त कर दिया गया है ।

पंचायती राज आने के बाद कई जनप्रतिनिधियों ने इस भ्रष्ठ व्यवस्था ( कमीशनखोरी )का जमकर विरोध कर कुछ हद तक अंकुश भी लगाया ताकि भोली भाली जनता को छला नहीं जा सके और जनता योजना का भरपुर लाभ ले सके । वही कुछ जनप्रतिनिधियों ने इस भ्रष्ठ व्यवस्था को अपनाकर कमीशनखोरी का खेल – खेलना शुरू कर दिये । योजनाओं के क्रियान्वयन पर कमीशन का भुगतान सर्वविदित है । हर योजनाओं के कागजात एवं कार्यो की जांच में सारी बातें खुलकर सामने आ जाएंगी । हर योजनाओं से सम्बंधित कागजात और कार्य अपने आप मे प्रमाण पत्र है । अगर कार्य किये गए योजनाओं का गंभीरता से जांच की जाय तो कई ऐसे क्षेत्र मिलेंगे जहाँ अब तालाब , कुआँ , सड़क , आवास के लिए खाली जगह नहीं मिल पाएंगे । आजादी के बाद से जितना चैकडेम , तालाब , डोभा , कुआ बनाया गया है अगर चतरा का क्षेत्रफल के साथ कार्य किये गए क्षेत्रफल को देखा जाय तो चतरा का क्षेत्रफल कम पड़ जायेगा ।

चतरा जिले में पेयजल संकट , सिचाई की समस्या , बेरोजगारी की समस्या , स्वास्थ्य की समस्या को दूर करने के नाम पर हर वर्ष करोड़ो रूपये खर्च किये जा रहे है । पर आए दिन घोटाले ,घपले ,घटिया निर्माण कार्य ,भ्रष्टाचार अखबारों के सुर्खियों में छाया रहता है इन सब बातों से यह साफ पता चलता है कि सरकारी नियमों का खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है । इन सभी योजनाओं में धांधली और भ्रष्टाचार की जड़े काफी फैल चुकी हैं । कमीशनखोरी , घूसखोरी , बिजोलियातंत्र हावी हो चुका है । इनकी जड़े काफी फैल चुकी है । चतरा जिले में विकास की योजनाओं में जिला से लेकर प्रखण्ड के अधिकारी , जनप्रतिनिधि , ठेकेदार ,और बिचौलिया कमीशन की गंगा में बगैर डुबकी लगाए नहीं रहते है । वही कुछ थानों में स्थानीय पुलिस घूसखोरी कर अफीम माफिया , शराब माफिया और लकड़ी माफियाओं के कारोबार में अप्रत्यक्ष रूप से मदद पहुचाने का भी काम करते है । यहां की जनता आज भी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित है तथा अधिकारी सभी आवश्यकताओं से परिपूर्ण होते है । यह है कि यहां जो अधिकारी एक बार आते है ,वे फिर यहां से जाना नहीं चाहते और अगर चले भी गए तो दोबारा लौट कर जरूर आते है या आने का प्रयास करते है ! जो अधिकारी इस जिले में कभी नहीं आए है वो नक्सली खौफ के कारण आना नही चाहते है और अगर आ गए तो फिर यहां से जाना नहीं चाहते है ! जिले में रोजगार नहीं मिलने के कारण मजदूर दूसरे राज्यो में काम करने के लिए पलायन कर रहे है । कोरोना काल मे जिस तरह मजदूर हजारों की संख्या में अपना घर लौट रहे थे ! उससे यह साफ जाहिर होता है कि मजदूरों का पलायन रोकने में जिला प्रशासन हमेशा असमर्थ रहा है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *