राष्ट्रीय शान
चतरा । सामान्यत: शांत समझे जाने वाले गजराज चतरा जिले के टंडवा प्रखण्ड में यूं ही उग्र नहीं हो गए हैं। बल्कि उनके उग्र होने के पीछे के कारण भी इंसान है, जिन्होंने उनके मार्ग में पड़ने वाले जंगल को नष्ट ही नहीं किया बल्कि वहां अपना घर भी बनाते जा रहे है।
झारखंड का राजकीय पशु हाथी (गजराज) है । हाथियों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर कई योजनाओं पर काम चल रहा है । अब हाथी का गुस्सा किसानो के लिए चिंता का विषय बन गया है । ऐसा कोई सप्ताह नहीं, जब किसी न किसी इलाके मे हथियों द्वारा मकान क्षतिग्रस्त तथा फसलों को बर्बाद करने की सूचना न आती हो । दर्जनों घर क्षतिग्रस्त कर दिए । कई एकड़ों में फैली फसल को रौंद दिया ।
टंडवा प्रखण्ड मे आखिर हाथियों का उत्पात क्यों बढ़ रहा है? हाथी जंगल छोड़ गांव और शहर में क्यों दाखिल हो रहे हैं? हाथियों और मनुष्यों के बीच बढ़ रहे टकराव को कैसे रोका जा सकता है? ऐसे कई सवालों का जवाब जानने की कोशिश शोध के माध्यम से चल रही है । अबतक के शोध में पता चला है कि जंगल क्षेत्र में लोगों का बसावट बढ़ने, जंगल घटने और हाथियों के क्षेत्र का अतिक्रमण होने की वजह से हाथी दिन प्रतिदिन उग्र हो रहे हैं । गजराज को लग रहा है कि उसका राज (क्षेत्र) समाप्त हो रहा है । तब वह जंगल से बाहर निकल रहे हैं ।
1979 बैच के सेवानिवृत्त आईएफएफ नरेंद्र मिश्रा से बातचीत की । नरेंद्र मिश्रा ने बताया कि झारखंड के जंगलों में हाथी खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं । इसकी कई वजहें हैं । जिसमें जंगल के आसपास उत्खनन, जंगल विस्फोट, नक्सल अभियान और जंगल के तस्कर प्रमुख हैं । हाथियों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर कई योजनाओं पर काम चल रहा है । इसके बाद भी हाथी जंगल से बाहर निकल रहे हैं, गांव और शहर में दस्तक दे रहे हैं, यह बेहद गंभीर है । चिंता का विषय है । श्री मिश्रा के अनुसार प्रदेश में सिंहभूम के जंगल हाथियों के प्राकृतिक आवास के लिए काफी मशहूर थे, लेकिन पिछले तीन दशक में हाथियों की प्राकृतिक आश्रयस्थली को काफी क्षति पहुंची है। आश्रयस्थली क्षति होने का मुख्य कारण है खनन में बढ़ोतरी और सड़क एवं रेलवे लाइन का विस्तार।वहीं दूसरी तरफ हाथियों के कॉरिडोर में आबादी का बसना सबसे बड़ा कारण है। कॉरिडोर डिस्टर्ब होने से हाथियों का आवागमन प्रभावित हो रहा है। जिससे हाथी झुंड में जंगल से बाहर निकलने के लिए मजबूर हो जाते हैं।जंगल से बाहर निकलते हैं, तो मनुष्य के साथ टकराव हो जाता है।
गौरतलब है कि हाथी दिखने में भले ही भारी-भरकम हैं, परंतु उसका मिजाज नाजुक और संवेदनशील होता है। थोड़ी थकान या भूख उसे तोड़ कर रख देती है। ऐसे में उसके प्राकृतिक घर यानी जंगल को जब नुकसान पहुंचाया जाता है तो मनुष्य से उसकी भिड़ंत होती है। वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को सहेज कर रखने में गजराज की महत्वपूर्ण भूमिका है। अधिकांश संरक्षित क्षेत्रों में, मानव जनसंख्या हाथियों के आवासीय क्षेत्रों के पास हैं और वन संसाधनों पर निर्भर हैं। तभी जंगल में मानव अतिक्रमण और खेतों में हाथियों की आवाजाही ने संघर्ष की स्थिति बनाई और तभी यह विशाल जानवर खतरे में है। कहने को भले ही हम कहें कि हाथी उनके गांव-घर में घुस रहा है, जबकि वास्तविकता यह है कि प्राकृतिक संसाधनों के सिमटने के चलते भूखा-प्यासा हाथी अपने ही पारंपरिक इलाकों में जाता है। जिस देश में हाथी के सिर वाले गणेश को प्रत्येक शुभ कार्य से पहले पूजने की परंपरा है, वहां की बड़ी आबादी हाथियों से छुटकारा चाहती है।