18वीं लोकसभा के चुनाव की बिसात बिछ गई, आरोप प्रत्यारोप का दौरा शुरू, राजनीतिक दल रस्साकशी में उतरे

◆सभी दल आंतरिक कलह का कर रहे हैं सामना , अल्पसंख्यकों में है गहरा रोष, सभी राजनीतिक दलों से है उनकी नाराजगी

सुजीत सिन्हा

गोला(रामगढ़)। देशभर में 18 वीं लोक सभा के चुनाव का बिगुल बज चुका है। इस चुनाव के माध्यम से देश भर से 543 सांसद चुने जाएंगे । ये प्रक्रिया 19 अप्रैल से शुरू होकर 01 जून तक चलेगी। तीसरे चरण का मतदान हो चुका है तथा मतदाताओं को रिझाने का सिलसिला अनवरत जारी है। देशभर में इस चुनावी मौसम में दलबदल का सिलसिला भी जारी है तथा ये थमने का नाम नहीं ले रहा। चुनाव आयोग शत् प्रतिशत मतदान कराने को लेकर कृतसंकल्प है। इस चुनाव में मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) एवं भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय विकासशील समावेशी गठबंधन(आई.एन.डी.आई.ए) के बीच है। कहीं कहीं कुछ राजनीतिक दल लड़ाई को त्रिकोणीय करने का माद्दा भी रखते है।

◆सभी दलों में आन्तरिक खींचतान मची हुई है

राजनीतिक महत्वाकांक्षा के अनुरूप लगभग सभी दलों में भागमभाग मची हुई है। हजारीबाग लोक सभा क्षेत्र में भी इस प्रकार का नजारा देखने को मिल रहा। मानमनौव्वल का दौर भी चल रहा है । दलों से ज्यादा मानमनौव्वल के लिए प्रत्याशियों को सिरदर्द लेना पड़ रहा है। दोंनो मुख्य दलों में तो ये सिरदर्द सबसे ज्यादा है। जो भी टिकट की रेस में पिछड़ गए उन्हीं से भीतरघात की ज्यादा समस्या है। गत दिनों भाजपा के कई नेता जिनमें प्रदेश कार्यसमिति सदस्य, जिला कार्यसमिति सदस्यों ने विरोध स्वरूप पार्टी के सभी पदों से तथा पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दिया तथा पार्टी पर कई गंभीर आरोप भी लगाये। हालाँकि ये सिलसिला जारी रहने वाला। यही हाल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की भी है जहाँ दबी जुबान से अपने प्रत्याशी को आयातित नेता माना जा रहा है जो कि पार्टी के लिए काफी घातक होगी। गत दिनों झारखंड सरकार के एक कैबिनेट मंत्री जो कि काँग्रेस कोटे से हैं उनके पर्सनल सेक्रेटरी के नौकर के यहाँ प्रवर्तन निदेशालय(ईडी) की छापेमारी में लगभग 45 करोड़ नकदी की बरामदगी हुई, जिस कारण पार्टी को बैकफुट में आना पड़ रहा है। दोनों राष्ट्रीय पार्टी के पुराने समर्पित कार्यकर्ता अपने प्रत्याशियों की वजह से असहज महसूस कर रहे हैं। अब देखना है कि दोनों राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशी अपने अपने समर्पित कार्यकर्ताओं को कैसे संतुलित रखते हैं।

इधर नवगठित दल झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा(जेएलकेएम) हजारीबाग संसदीय क्षेत्र में लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने का भरपूर प्रयास कर रही है तथा इसमें वो सफल होती हुई दिखाई दे रही है।

◆अल्पसंख्यकों में सभी राजनीतिक दलों के प्रति है गहरा रोष

अल्पसंख्यकों में विशेषतौर पर मुस्लिम समाज अपनेआप को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। उनका ये रोष सभी राजनीतिक दलों के प्रति है। इस संबंध में समाजसेवी असगर अली ने कहा कि सारे राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों ने इस समाज को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल कर अपना उल्लू सीधा किया। झारखंड की सभी 14 लोकसभा सीटों पर एक भी अल्पसंख्यक प्रत्याशी नहीं दिया जाना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। आगे उन्होंने कहा कि हमारा समाज क्या सिर्फ झंडा ढोने या दरी बिछाने के लिए है। लोकतंत्र की खूबसूरती है कि आम जनता को साधारणतया पाँच वर्षों में अपना प्रतिकार करने का मौका मिलता है।

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