अवैध नर्सिंग होम संचालक जिला प्रशासन को खुलेआम दे रहा चुनौती , स्वास्थ्य विभाग नतमस्तक

स्वास्थ्य विभाग का गठित बोर्ड बगैर नर्सिग होम जांच किए कागजी आधार पर दे दिया दर्जनों क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट सर्टिफिकेट

राष्ट्रीय शान

चतरा । चतरा जिले में इन दिनों अवैध नर्सिंग होम संचालक जिला प्रशासन को खुलेआम चुनौती दे रहा है । तभी तो कुकुरमुत्ते की तरह फैले अवैध नर्सिंग होम में अब तक कई लोगों की जान जाने के बाद भी जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग तमाशबीन बना हुआ है । केन्द्र व राज्य सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए लगातार प्रयासरत है पर सरकार के इस सार्थक पहल पर पानी उनके नौकरशाह ही फेरने में लगे हुए है । जिन अधिकारियों के कन्धों पर स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करने की जिम्मेदारी मिली है उन्ही के द्वारा दीपक की तरह खोखला किया जा रहा है । तथा सब कुछ देखकर भी अनजान बने हुए है ।

एक ओर उपायुक्त अवैध नर्सिंग होम , अल्ट्रासाउंड , जांच घर जैसे नियम संगत और प्रशिक्षित डिग्री नहीं रखने वालों के विरुद्ध न्याय संगत करवाई का आदेश स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को कई बार दिया है । इसके बावजूद अधिकारी सिर्फ खानापूर्ति करने का काम किया है । गांव से लेकर प्रखंड एवं जिला मुख्यालय में अवैध नर्सिंग होम का कुकुरमुत्ते की तरह जाल बिछ चुका है । जहां न सिर्फ मरीजों से इलाज के नाम पर मोटी धनराशि वसूली जाती है बल्कि ऑपरेशन के नाम पर मरीजों को गुमराह भी किया जाता है। नर्सिंग होम के आड़ में कई झोलाछाप डॉक्टर यूट्यूब के सहारे कई गम्भीर बीमारियों का ऑपरेशन धड़ल्ले से कर रहे हैं और विभाग सब कुछ जानकर भी अनजान बनकर बैठा हुआ है । यदि देखा जाए तो नर्सिंग होम एक प्रकार का अच्छा मुनाफा देने वाला व्यवसाय बन चुका है और यह कारोबार चतरा जिले की धरती पर खूब फल- फूल रहा है । हाल के दिनों में लावालौंग का झोला छाप बच्चा चोरी के अलावे अन्य आरोपों में जेल जा चुके डॉक्टर की दिलेरी इतनी बढ़ गई कि अब वह समाहरणालय से महज एक किलोमीटर की दूरी पर मरीजों का ऑपरेशन कर रहा है । इन अवैध नर्सिंग होम में ऑक्सीजन तथा खून का व्यवस्था नहीं रहने के बावजूद मरीजों का पेट फाड़ दिया जाता है, इतना ही नहीं झोला छाप डॉक्टर यूट्यूब देखकर गोल ब्लाडर में स्टोन जैसे बड़े जोखिम भरा ऑपरेशन तक कर रहे है । यही कारण है कि मरीजों का आए दिन मौत हो रही है । रविवार को न्यू पुलिस लाईन के समीप एम एस नर्सिंग होम में एक मरीज की मौत हो गई । मरीज की मौत के पश्चात नर्सिग होम संचालक फंसता देख आनन फानन में परिजन को ढाई लाख रुपये देकर मामले का रफा दफा कर दिया ।हालांकि घटना के पश्चात ही स्वास्थ्य विभाग का जिले के सबसे बड़े अधिकारी को जानकारी दिए जाने के बावजूद करवाई नहीं किया गया । आश्चर्य तो तब होता है जब इसके जांच के लिए गठित किया गया टास्क फोर्स की टीम के द्वारा इनके विरुद्ध किसी भी प्रकार का कोई कार्यवाही नहीं किया गया । इतना ही नही चंद रुपयों की खातिर स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी अपना फर्ज व ईमान तक बेंच दिए है । कभी-कभी जब किसी मरीज का जान इन नीम हकीम के चक्कर में चला जाता है और मामला जब ज्यादा चर्चे में आ जाता है तब रस्म अदायगी के तौर पर उस नर्सिंग होम को सील करने का ढोंग रचा जाता है । इस मामले में एक अवैध नर्सिग होम संचालक ने नाम नहीं छापने के शर्त में बताया कि नर्सिंग होम की वैधता की तिथि समाप्त हो जाने के बाद रिन्यूवल कराने में 30 हजार रुपये बतौर चढ़ावा सिविल सर्जन कार्यालय में देना पड़ता है । अगर क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट सर्टिफिकेट की वैधता की तिथि समाप्त हो जाती है तो अवैध ढंग से संचालित होता रहे उसके लिए उन्हें स्वास्थ्य विभाग के एक पदाधिकारी को प्रतिमाह चढ़ावा के तौर पर पैसा देना होता है। इस प्रकार से सेटिंग वेटिंग का यह खेल अवैध नर्सिंग होम संचालक के द्वारा कई वर्षों से चलता आ रहा है। वैसे तो अवैध ढंग से संचालित नर्सिंग होम कमोबेश सभी प्रखंडों में देखा जा रहा है । फिर भी इटखोरी ,प्रतापपुर ,हंटरगंज, टंडवा व सदर प्रखंड में खुलेआम चिर-फाड का कार्य होता है और नर्सिंग होम का बोर्ड भी लगा हुआ है। इसके बावजूद सब कुछ देख सुनकर भी सिस्टम कुम्भकर्णीय नींद में सो रही है । सवाल तो यह भी है कि पर्दे के पीछे से इन्हें किसका संरक्षण प्राप्त है जो ये निर्भीक होकर नर्सिंग होम का अवैध ढंग से संचालन कर रहे हैं? दूसरा प्रश्न यह उठता है कि नियमों का आहर्ता पूरी नहीं करने वाले नर्सिंग होम संचालक को बोर्ड किस परिस्थिति में क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट सर्टिफिकेट पारित कर देता है । जिला मुख्यालय सहित कई प्रखण्डों में प्रशासन की आंखों में धूल झोंककर गर्भपात कराने का कार्य धड़ल्ले से पर्दे की आड़ में चल रहा है । अल्ट्रासाउंड कर भ्रूण परीक्षण किया जा रहा है । चतरा जिले में संचालित एक भी अल्ट्रासाउंड क्लिनीक में रेडियोलॉजिस्ट , सोनोग्राफी या डीएमआरडी डिग्री के डॉक्टर नहीं है । जिले में संचालित अल्ट्रासाउंड क्लिनीक में डिग्रीधारी डॉक्टरो का सिर्फ नाम और बोर्ड का इस्तेमाल किया जा रहा है और भ्रूण परीक्षण कर मोटी रकम वसूल रहे है । बहरहाल आगे देखना यह है कि अवैध नर्सिंग होम व अल्ट्रासाउंड क्लिनीक के विरुद्ध करवाई होता है या फिर वर्षो से जिस तरह चन्द रुपयों की खातिर अपना फर्ज व ईमान बेंचकर मामले को अनदेखी करने का सिलसिला संबंधित अधिकारी द्वारा जारी रहता है । भ्रूण परीक्षण किए जाने से लड़कियों की जन्म स्तर में कमी आई है

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