◆जेबीकेएसएस को छोड़ दोनों राष्ट्रीय दल भीतरघात केई शिकार , सामान्य जातियों का भाजपा से हुआ मोह भंग, सभी दलों में बँटा मत
◆यशवंत सिन्हा ने निकाली भाजपा से खुन्नस, काँग्रेस को दिया भरपूर समर्थन निवर्तमान सांसद जयंत सिन्हा एवं धनबाद विधायक राज सिन्हा को “कारण बताओ नोटिस” आग में घी डालने केई समान
रामगढ़ ( सुजीत सिन्हा )। हजारीबाग लोकसभा चुनाव 20 मई 2024 को शान्तिपूर्ण सम्पन्न हो गया । चुनाव सम्पन्न होने के साथ ही चौक-चौराहों पर हार जीत की चर्चा खूब हो रही है । ईभीएम में प्रत्यासियों के भाग्य का फैसला बंद हो गया है । अब ऐसे में देखना है कि जनता किसे ताज पहनाती है इसका फैसला 4 जून को होने वाला है । हालांकि यह चुनाव त्रिकोणीय संघर्ष माना जा रहा है । इस त्रिकोणीय संघर्ष में बीजेपी से ‘मनीष जयसवाल ,कांग्रेस से ‘जयप्रकाश पटेल’तथा जेबीकेएसएस से तेज तर्रार , शिक्षित युवा प्रत्याशी संजय मेहता को जनता ताज पहनाती है अभी तक संसय बना हुआ है । इस लोकसभा क्षेत्र से कूल सत्रह उम्मीदवार अपने चुनावी किस्मत आजमा रहे हैं। सभी उम्मीदवार अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। वहीं सभी उम्मीदवार चुनाव प्रचार में अपने पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान क्रियाशील थे। लेकिन मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों के बीच ही है लेकिन इसमें कतई संदेश नहीं कि जेएलकेएम(झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा) प्रत्याशी संजय मेहता इस राजनीतिक लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने मे कोई कसर नहीं छोड़ा । गौरतलब यह है कि दोनों राष्ट्रीय दलों के उम्मीदवार हजारीबाग सदर और मांडू विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। दोनों पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों उम्मीदवार अपनी अपनी जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दिए हैं। दोनों के बीच कांटे का संघर्ष माना जा रहा है। जयप्रकाश भाई पटेल काँग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि वे 2019 के चुनाव में मांडू विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में विजय हुए। वहीं दूसरी ओर मनीष जायसवाल हजारीबाग सदर विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं। ये दो बार हजारीबाग विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं।
◆जयंत सिन्हा का टिकट कटना हो सकता है भाजपा के लिए परेशानी का सबब
भारतीय जनता पार्टी ने अपने सिटिंग सांसद जयंत सिन्हा का टिकट काटकर सदर विधायक मनीष जायसवाल को अपना प्रत्याशी बनाया। यहीं से पार्टी के अन्दर रामगढ़ एवं हजारीबाग से पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस्तीफे की झड़ी लगा दी। गौरतलब हो कि टिकट वितरण के कुछ माह पूर्व जयंत सिन्हा को सर्वश्रेष्ठ सांसद के पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। गत 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा प्रत्याशी जयंत सिन्हा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी काँग्रेस के प्रत्याशी गोपाल साहु को 479548 मतों के भारी अन्तर से शिकस्त दी थी। टिकट वितरण में इन सब उपलब्धियों को भी दरकिनार कर दिया गया। दबी जुवान से लोग इसे भाजपा का “जेवीएम करण” मान रहे हैं।
◆काँग्रेस पार्टी भी आन्तरिक कलह से अछूता नहीं
नामांकन के साथ ही जेपी पटेल को नफा नुकसान दोनों का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के कई नेता कार्यकर्ता नाराज चल रहे हैं। वे जेपी पटेल के साथ हैं जरूर लेकिन उनकी नाराजगी कुछ और बयाँ कर रही है। आगे देखना है कि जेपी पटेल को इससे क्या फर्क पड़ता है। हालाँकि बड़कागाँव विधायक अंबा प्रसाद एवं बरही विधायक अकेला यादव जी-तोड़ मेहनत किए।
◆यशवंत सिन्हा ने निकाली भाजपा से खुन्नस
हालाँकि काँग्रेस पार्टी को पूर्व केन्द्रीय वित्त एवं विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा का भरपूर साथ मिला। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के प्रति अपनी भड़ास को निकाला तथा भाजपा को परास्त करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। उन्होंने पुरे चुनाव अवधि में कहा कि जनता को भ्रमित करने की एक सीमा होती है। काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ाई जाती। जनता को फैसला करना है। उन्होंने काँग्रेस पार्टी के लिए ताबड़तोड़ प्रेस कॉन्फ्रेंस की तथा अपने पुराने कार्यकर्ताओं से सम्पर्क साधा।
◆सामान्य जातियों का भाजपा से कुछ हद तक हुआ मोह भंग
एक समय सामान्य जातियों का काफी हद तक मत भाजपा को मिलता था लेकिन वो भ्रम कुछ हद तक इस पुरे झारखंड के लोक सभा चुनाव के आकलन से ज्ञात होता है कि टूट गया। टिकट वितरण में जिस प्रकार का गुटबाजी देखने को मिली है इससे पता चलता है कि पार्टी जाति संतुलन को बनाए रखने में पुरी तरह से विफल रही। इस बार सामान्य जातियों का काफी हद तक मत विभाजन होकर सभी दलों में गया है ये सीधा संकेत है आनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए।
◆जयंत सिन्हा तथा धनबाद विधायक राज सिन्हा को “कारण बताओ नोटिस” आग में घी डालने के समान
निवर्तमान सांसद जयंत सिन्हा तथा धनबाद सदर विधायक सहित कई अन्य नेताओं को कारण बताओ नोटिस दिये जाना तथा दो दिनों के अन्दर स्पष्टीकरण देना भी पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। इसकी संज्ञान केन्द्रीय नेतृत्व को लेनी चाहिए नहीं तो आगामी विधानसभा चुनाव में तस्वीर विपरीत होगी। दावे प्रति दावे काफी है लेकिन सारी धुँधली तस्वीर मतगणना के दिन 04 जुन को साफ हो जाएगी कि “ऊँट किस करवट लेती है”।