सम्मान से जी रहे लाखों अजन्मी बेटियों के भ्रूण हत्यारों को स्वास्थ्य विभाग का संरक्षण है प्राप्त ।।
उपायुक्त रमेश घोलप कुकृत्य करने वाले दोषीयों के विरुद्ध ले सकते है बड़ा एक्शन ।।
चतरा ( संजीत मिश्रा )। चतरा जिले में झोला छाप डॉक्टरों का मनोबल इतना बढ़ गया है कि वर्तमान समय मे गली – मुहल्ला व प्रखण्ड मुख्यालय से लेकर जिला मुख्यालय स्थित समाहरणालय से महज एक किलोमीटर की दूरी पर बगैर क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट व बिना सर्जन डॉक्टर के बड़े – बड़े ऑपरेशन किया जा रहा है तथा कोख में पल रही बच्चियों को मार दिया जा रहा है । एक ओर वैसे सभी नर्सिंग होम जो नियम विरुद्ध संचालित है । उनके विरुद्ध नियम संगत करवाई करते हुए सील करने का आदेश राज्य के वरीय अधिकारियों ने कई बार पत्र के माध्यम से दिया है पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी मासिक नजराना के खातिर डीसी और राज्य अधिकारी के आदेशों का ठेंगा दिखातें आ रहे है । इसके बावजूद दोषी अधिकारी व कर्मी के विरुद्ध करवाई नहीं किया जाना कई सारे सवालों को जन्म दे रही है ?
एक ओर जहां हॉस्पिटल व नर्सिंग होम को मंदिर और डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर जब वही डॉक्टर ईलाज के नाम पर शैतान का रूप धारण कर गर्भपात जैसा घिनौना कृत्य करने में लगें हुए है तो ये सवाल उठना बेहद लाजमी है की शहर में कुकुरमुत्ता की तरह उगे मानक विहीन नर्सिंग होम में जहां एक ओर ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों का जमकर आर्थिक शोषण हो रहा है। वही वैद्य-अवैद्य कार्यों को संपन्न कराकर संचालक अपनी जेब भर रहे हैं। इन नर्सिंग होम में अवैध गर्भपात से लेकर तमाम जायज नाजायज कार्य को अंजाम दिया जा है। इतना ही नही मरीजों के स्वास्थ्य के साथ भी खुलकर खिलवाड़ किया जाता है। हालांकि कुछ ग्रामीण चिकित्सक जो खांसी , बुखार , कैदस्त आदि बीमारियों में दवा के माध्यम से ईलाज करते है । उन्हें भगवान के रूप में गांव वाले पूजते है पर कुछ झोला छाप डॉक्टर ऐसे भी है जो अधिक पैसे कमाने के चक्कर मे यूट्यूब देखकर या डॉक्टरों के पास असिस्टेंट के रूप में काम करने वाले युवक बड़े बड़े ऑपरेशन कर दे रहे है । जिसमें कई मरीजों को अपनी जान गवानी पड़ी है । इसके बावजूद विभाग करवाई के नाम पर सिर्फ कागजी कोरम पूरा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है ।
शिक्षा के अभाव में कुछ लोगो द्वारा चतरा जिले में बेटी का जन्म किसी भी कीमत पर रोका जाता है। इसलिए समाज के अगुआ लोग माँ के गर्भ में ही कन्या की हत्या करने का सबसे गंभीर अपराध कर रहे हैं। इस तरह के अनाचार ने मानवाधिकार, वैज्ञानिक तकनीक के उपयोग और दुरुपयोग की नैतिकता और लैंगिक भेदभाव के मुद्दों को जन्म दिया है। गर्भ से लिंग परीक्षण जाँच के बाद बालिका शिशु को हटाना कन्या भ्रूण हत्या है। केवल पहले लड़का पाने की परिवार में बुजुर्ग सदस्यों की इच्छाओं को पूरा करने के लिये जन्म से पहले बालिका शिशु को गर्भ में ही मार दिया जाता है। ये सभी प्रक्रिया पारिवारिक दबाव खासतौर से पति और ससुराल पक्ष के लोगों के द्वारा की जाती है। इस कार्य मे अल्ट्रासाउंड संचालक से लेकर झोला छाप डॉक्टर के सहयोग से गर्भपात किया जा रहा है । समाज मे कुछ कुकृत्य लोगों के कारण ही लड़कियों को मारने की प्रथा को सदियों से चलता आ रहा है। लोगों का मानना है कि लड़के परिवार के वंश को जारी रखते हैं जबकि वो ये बेहद आसान सी बात नहीं समझते कि दुनिया में लड़कियाँ ही शिशु को जन्म दे सकती हैं, लड़के नहीं।
केंद्र व राज्य सरकार की ख्वाहिश है और देश का यह बुलंद नारा है – ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’। और धरातल की सच्चाई क्या है, देश के लोग उस नारे को, आह्वान को, कितनी गंभीरता से ले रहे हैं? संभवतः ऐसे ही हालात के मद्देनजर पीएम नरेंद्र मोदी ने ‘बेटी बचाओ’ मिशन को इतनी शिद्दत से अपने प्राथमिक दायित्वों में शामिल किया है । जिस भारतीय समाज में प्रतिदिन कन्याओं की जन्म से पहले ही भ्रूण हत्याएं कर दी जा रही हों, वहां के लोगों को इतना भयानक हृदय विदारक कार्य विचलित क्यों नहीं कर रहा है?
क्या इन सब बातों को जानकर भी स्वास्थ्य विभाग , टास्क फोर्स कुकृत कार्य कर रहे अवैध नर्सिंग होम संचालको को खुली आजादी दे रखी है ??
संबंधित दोषी से लेकर झोला छाप डॉक्टर के विरुद्ध अब तक कितनी करवाई हुई यह भी बड़ा सवाल ??
लड़कियों का जन्म दर घटने के बावजूद तथा राज्य के अधिकारियों के चिंता जताने के बावजूद , सब कुछ जानकर कुम्भकर्णीय नींद में क्यों है स्वास्थ्य विभाग ??
वैसे अधिकारियों को जिम्मेदारी क्यूँ दी जाती है जो करवाई के बजाय शिथिल रवैया अपनाये हुए है ??
क्या PNDT की बैठक सिर्फ औपचारिकता पूरी करने के लिए होती है , अगर नहीं तो मानक पूरी नहीं करने वालों के विरुद्ध स्वास्थ्य विभाग करवाई क्यूं नहीं कर रही है ??