किराए पर MBBS का सर्टिफिकेट लेकर मरीजो कि जान के साथ खिलवाड़ कर रहे है झोला छाप डॉक्टर ।।

अब तक दर्जनों की हो चुकी है मौत ,सभी मामलों में विभाग ने कर दिया लीपापोती , सब कुछ जानकर भी सिविल सर्जन बने रहते है अनजान ।।

निजी नर्सिंग होम में जांच के दौरान गड़बड़ियां देख भड़के राज्य के स्वास्थ्य विभाग की टीम ।।

जानकर रह जाएंगे हैरान 12वीं का छात्र युवक शंभू MBBS बन मरीजों का करता है ईलाज , शहर के बस स्टैण्ड स्थित राज हॉस्पिटल का शम्भू है मालिक ।।

चतरा ( संजीत मिश्रा )। चतरा में स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली काफी बद से बदत्तर है । शिक्षा के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले भोले-भाले लोग झोलाछाप डॉक्टरों के झांसे में अक्सर फंस जाते हैं और बेहतर ईलाज के चक्कर मे जान तक गवां देते है । बिना डिग्री अधूरा ज्ञान के झोला छाप डॉक्टर के द्वारा गलत ईलाज में मौत हो जाने के पश्चात उनके परिजनों को लाख दो लाख में जान की कीमत का सौदा कर मामले की रफा दफा में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और कर्मी की अहम भूमिका होती है तथा स्वास्थ्य विभाग का पूरी तरह से अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण प्राप्त है । यही वजह है कि इनका मनोबाल चरम पर है ।

निजी नर्सिंग होम के झोलाछाप डॉक्टर के द्वारा डिलीवरी , यूट्यूब देखकर बड़े-बड़े ऑपरेशन , खून के जगह पर जूस चढ़ा देना , नवजात बच्चा बेच देना , अपना रिपोर्ट सही करने के लिए नवजात का लिंग काट देना जैसे कई गम्भीर मामलों का उजागर हुआ । जिला मुख्यालय सहित अधिकांश प्रखण्डों में जच्चा और बच्चा सहित गलत ईलाज के कारण कई मरीज काल के गाल में समा गए । पर ठोस करवाई के बजाय स्वास्थ्य विभाग के द्वारा शिथिल रवैया , अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण के साथ साथ सब कुछ जानकर भी सिविल सर्जन का मौन रहना यह स्पष्ट हो जाता है कि विभाग के संरक्षण में मरीजों के जान के साथ खिलवाड़ का कारोबार फल फूल रहा है । यह जिला झोलाछाप डॉक्टरों के लिए चारागाह बनकर रह गया है । इस प्रकरण में चतरा जिले का सिविल सर्जन ऑफिस की भूमिका काफी संदिग्ध है । जहां मोटी धनराशि को लेकर क्लिनीकल एस्टेब्लिशमेंट सर्टिफिकेट रेबड़ी की तरह निर्गत किया गया है । तभी तो आज के समय में 600 सौ निजी नर्सिंग होम संचालकों को बिना आहर्ता पूरा किये लाइसेंस निर्गत कर दिया गया है । हालांकि सूत्रों की माने तो इस लाइसेंस को झोला छाप डॉक्टर लेने के लिए तीन से चार लाख रुपये बतौर चढ़ावा सिविल सर्जन कार्यालय में सम्बंधित कर्मी को दिया गया है । इस प्रकरण में स्वास्थ्य विभाग के एक कर्मी का सबसे अधिक नाम चर्चा में हमेशा है । जब इस बात की भनक जांच टीम को लगी तो बैठक के दौरान कई बार स्वास्थ्य विभाग के पोखराज को वरीय अधिकारी बुलाते रहे पर वह आना मुनासिब नहीं समझे । वैध-अवैध की बात करें तो पूरे जिले भर में हजारों के तादाद में नर्सिंग होम का जाल बिछा हुआ है । नर्सिंग होम संचालक दलालों के माध्यम से अपना नेटवर्क काफी मजबूत कर चुके हैं । यही वजह है कि दलाल के झांसे मे आकर ग्रामीण क्षेत्र के लोग फंस जाते हैं और मरीजों का बिना डिग्रीधारी झोला छाप डॉक्टर धड़ल्ले से ये ऑपरेशन कर देते हैं । इसके बदले में काफी पैसा वसूल करते हैं साथ ही कभी-कभी इन्हें अपना जान से भी हाथ धोना पड़ता है। झोलाछाप चिकित्सकों द्वारा बिना पंजीयन के चिकित्सा का व्यवसाय ही नहीं किया जा रहा बल्कि बिना ड्रग लाइसेंस के दवाओं का भंडारण कर विक्रय भी अवैध रूप से किया जा रहा है ।इन नर्सिंग होम में कम दामों में इलाज के लुभावने प्रचार में मरीज फंस जाते हैं।

12 वीं कक्षा का छात्र डॉक्टर बन मरीजों का कर रहा था ईलाज गड़बड़ियां देख भड़के राज्य स्तरीय स्वास्थ्य विभाग की टीम , कहा चतरा जिले से भयावह स्थिति अन्य जिलों में नहीं

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सिविल सर्जन जगदीश प्रसाद के संरक्षण में ही निजी नर्सिंग होमो का संचालन किया जा रहा है। कई ऐसे भी नर्सिंग होम हैं जिन्होंने कहने को तो क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट सर्टिफिकेट हासिल कर रखा है। परंतु नियमो की अनदेखी करने से भी नहीं चूक रहे हैं। ऐसे नर्सिंग होम बिना झारखण्ड आयुष काउंसिल में रजिस्ट्रेशन करवाए बीएएमएस के डिग्री लेकर मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे है । ऐसे ही बिना सिर पैर के नर्सिंग होमो की जांच करने राज्य स्वास्थ्य अधिकारियों की टीम चतरा पहुंची। जांच टीम में
राज्य स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर बीरेन्द्र प्रसाद तथा स्टेट कन्सन्टेन्ट राहुल कुमार शामिल थे। टीम ने औचक जांच के क्रम में पाया कि अधिकांश अस्पताल/नर्सिंग होम मानक के अनुरूप कार्य नहीं कर रहे हैं। तथा जिस डॉक्टर का बोर्ड लगाए हुए है वह हमेशा नदारत रहते है । टीम ने मरीजो से पूछताछ के पश्चात यह माना कि मरीज के परिजनों से ईलाज के दौरान मनमाने रूपये वसूली की जाती है। स्टैंडर ट्रीटमेंट गाईड लाइन का भी अनुपालन नहीं किये जाने की बात कही । निजी नर्सिंग होम संचालको के मनोबल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जांच के क्रम में राज्य स्वास्थ्य अधिकारी की टीम के द्वारा नर्सिंग होम का मेडिकल रिकार्ड मांगे जाने पर रिकार्ड तक देना उचित नहीं समझा। जांच अधिकारी ने बताया कि बस स्टैंड चतरा के समीप राज हॉस्पिटल, कुंती हरि सेवा सदन तथा सेवा सदन में जांच के क्रम में नर्सिंग होम में सीजीरियन ऑपरेशन से डिलेवरी कराए गए महिलाओं को सम्बंधित डॉक्टर का ओटी ड्यूटी रजिस्टर नहीं पाया गया तथा मरीजों का डॉक्टर द्वारा हर दिन एसेसमेंट करते नहीं पाया गया । जांच टीम ने बताया की प्रसव के आठ दिन बीत जाने के बावजूद नवजात बच्चे को दिए जाने वाले टिका (वैक्सीन ) अब तक नहीं दिया गया है । टीम के अधिकारियों को सबसे ज्यादा तब आश्चर्य हुआ जब उन्होंने डॉक्टर के कुर्सी पर एक 12 वीं कक्षा के छात्र शम्भू नामक युवक को मरीजों का ईलाज करते देखे । इन गड़बड़ियों को देखकर जांच टीम भड़क उठे और युवक का भविष्य का ख्याल करते हुए कहा वैसे सभी नर्सिंग होम संचालकों से आग्रह है कि वह अपना क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट सर्टिफिकेट सरेंडर कर दें अन्यथा वैसे सभी निजी नर्सिंग होमो के विरुद्ध सख्त करवाई की जाएगी जिनका मानक के अनुरूप नर्सिंग होम संचालित नहीं है । जांच टीम ने यह भी कहा कि चतरा जिले से ज्यादा भयावह स्थित हम लोगों ने अन्य जिलों में नहीं देखा है । टीम के वरीय अधिकारी ने यह भी कहा कि जांच किये गए तीनों निजी नर्सिंग होम के विरुद्ध विभाग और चतरा उपायुक्त को सख्त से सख्त करवाई के लिए पत्र लिखूंगा । तथा इस जिले के इस भयावह स्थिति को सुधारने के लिए माह दो माह पर औचक जांच के लिए जरूर आएंगे ।

सिविल सर्जन का लालफीताशाही मशहूर,सबकुछ जानकर बने है मौन

चतरा के सिविल सर्जन डॉक्टर जगदीश प्रसाद अपने लाल फीताशाही के लिए मशहूर है । अपने पद का जमकर दुरुपयोग कर रहे हैं तथा नियम विरुद्ध कार्य करने से भी बाज नहीं आते है । चतरा जिले में योगदान लेने के बाद से सिविल सर्जन जगदीश प्रसाद मीडिया के समक्ष बातें तो बड़ी-बड़ी की पर अब तक कार्रवाई के नाम पर सिर्फ महज खाना पूर्ति करते आ रहे है । यह कहना मुनासिब होगा बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया के तर्ज पर चतरा का स्वास्थ्य विभाग काम कर रहा है । स्वास्थ्य विभाग के जिले के सबसे बड़े अधिकारी सिविल सर्जन जगदीश प्रसाद की शिथिलता , फर्ज ईमान को गिरवी रख देना , करवाई के नाम पर महज खाना पूर्ति का ही नतीजा है कि राज्य की टीम औचक जांच करने स्वास्थ्य विभाग की टीम आज चतरा पहुंची । इस टीम के द्वारा कुछ नर्सिंग होम जांच किया गया जिसमें काफी गड़बड़ियां पाई गई ।

बैठक में महज 20 निजी नर्सिंग होम संचालक ही हुए शामिल , 600 लाइसेंस किया गया है निर्गत

राज्यस्तरीय स्वास्थ्य विभाग की टीम ने सिविल सर्जन ऑफिस में सारे नर्सिंग होम के संचालकों की एक बैठक बुलाई थी परंतु दुर्भाग्य यह रहा की मात्र 20 की संख्या में ही नर्सिंग होम का संचालक यहां उपस्थित हुए जबकि चतरा जिले में 600 से भी ज्यादा नर्सिंग होम संचालित है। चतरा जिले में निजी नर्सिंग होम के झोला छाप डॉक्टरों द्वारा गलत ईलाज के कारण दर्जनों मौते हुई । सम्बंधित दोषी नर्सिंग होम के विरुद्ध कागजी खाना पूर्ति कर मामले को रफा-दफा करते आ रहे है ।

मौत के बाद जांच के साथ नहीं होती है वीडियोग्राफी

किसी भी नर्सिंग होम में लापरवाही से मरीज की मौत के बाद शिकायत होने पर स्वास्थ्य अधिकारियों ने जांच किया हैं। जांच के दौरान वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी, मरीज के परिजनों और अन्य गवाहों के बयान, टीम के सदस्यों का विवरण, किन दवाओं का प्रयोग किया गया था, किस डॉक्टर के द्वारा ईलाज किया गया था , दस्तावेजों की जांच और मुकदमा दर्ज कराना शामिल है। विभाग पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी नहीं कराता है। इससे मामला रफा-दफा हो जाता।

कड़ी धाराओं का प्रावधान, फिर भी घोर लापरवाही

अगर कोई अप्रशिक्षित व्यक्ति चिकित्सा के नाम पर मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ करता है, तो उसके खिलाफ इंडियन मेडिकल काउंसलिंग एक्ट 1956 की धारा 15(3), आईपीसी की धारा 420 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने का प्रावधान है। इसमें 10 से 15 साल तक की सजा और जुर्माना शामिल है। चतरा में अब तक चिकित्सा अधिकारी मामला दर्ज कराने से परहेज करते आए हैं।

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