नक्सल प्रभावित जिला से शहरी जिला में जाना चाहते है हवलदार व आरक्षी , पुलिस मुख्यालय का नहीं है इस ओर ध्यान ।।
चतरा । प्रशासनिक कारणों से एक अबधि पूर्ण कर लेने पर एक जिले से दूसरे जिले में ट्रांसफर व पोस्टिंग अधिकारी व कर्मियों को किया जाता है । इसका मुख्य कारण है कि प्रशासनिक अधिकारी को अपने अधीनस्थ से कार्य लेना होता है और एक जगह लंबे समय तक रहने से व्यक्तिगत संबंध बनने लगते है । वही कर्मियों के साथ भी है एक जगह लम्बे समय तक रहने से कुछ लोगों के साथ मधुर संबंध हो जाने पर सही निर्णय लेने में कठिनाई उत्पन्न होती है । इसलिये साधरणतया दो या तीन साल में अधिकारियों का स्थानांतरण कर दिया जाता है। वही कर्मियों की बात करें तो 5 या सात साल पर स्थानांतर किया जाता है । कुछ जिलों में तो तबादला काफी लम्बे समय से पुलिस कर्मियों का नहीं किया गया है । ताजा उदाहरण चतरा जिला का है । जहां हवलदार और आरक्षी लगभग 15 वर्षो से पदस्थापित है ।
पुलिस विभाग में अधिकारियों का तबादला 5 सालों के भीतर किया जा रहा है जबकि कर्मियों का तबादला काफी लम्बे समय पर किया जाता है । चतरा जिला उग्रवाद प्रभावित जिला है । इस ज़िले में हवलदार और आरक्षी लगभग 15 वर्षो से पदस्थापित है । हवलदार व आरक्षी अपने तबादले को लेकर परेशान है । हलवादार व आरक्षी के पद पर कार्यरत जवान शहरी क्षेत्र में अपने परिवार के साथ जाना चाहते है । जानकारी के अनुसार 2009 , 2010 व 2011 ई. में जिन पुलिस कर्मियों ने ( हवलदार व आरक्षी ) चतरा में योगदान दिया है । उनका तबादला अब तक नहीं हुआ है ।
आपको बता दें कि इस मामले में झारखण्ड पुलिस मेन्स एसोसिएशन भी मौन है । ऐसे में हवलदार व आरक्षी का तबादले का मुद्दा कौन उठाएं ? यह भी सवाल एक सवाल है । झारखंड पुलिस मेंस एसोसिएशन का मौन के कारण नक्सल प्रभावित जिले में योगदान दे रहे आरक्षी और हवलदार इस बात को लेकर चिंतित है कि इस जिले से शहरी क्षेत्र के जिले में आखिर विभाग के वरीय अधिकारी कब तबादला करेंगे । प्राप्त जानकारी के अनुसार 2005 में योगदान देने वाले पुलिस कर्मियों का तबादला 2014 से लेकर 2019 तक रहने वाली बीजेपी की सरकार में तबादला किया गया था । परन्तु उसके बाद से वर्तमान सरकार में तबादला की प्रक्रिया नहीं किया गया है । ऐसे में वर्तमान सरकार से भी आश लगाये हुए है की जल्द ही ट्रांसफर , पोस्टिंग की प्रकिया में शहरी क्षेत्र जाने का मौका मिलेगा ।
सूत्रों की माने तो सबसे मजे की बात यह है कि कुछ पुलिस कर्मी ( आरक्षी/हवलदार ) पैरवी व पैसे के दम पर नक्सल प्रभावित जिला से शहरी क्षेत्र में अपना तबादला करवाने में सफल रहें है । जबकि कई ऐसे पुलिस कर्मी ऐसे है जिनके पास पैरवी व पैसा नहीं है । वैसे पुलिस कर्मी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में ही जमे रहते है या फिर इस मामले में पुलिस मुख्यालय संज्ञान लेते हुए तबादले की प्रक्रिया शुरू भी करती है या फिर मामला पहले की भांति ठण्डे बस्ते में पड़ा रहता है । यह देखना दिलचस्प होगा ।