अभिलेखागार में भूमि दस्तावेजों के साथ भारी छेड़छाड़ , रेकड रूम कर्मियों व अधिकारी के साथ राजस्व कर्मचारियों की संलिप्ता आ रही है सामने ।।

दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और जल्द ही इस विवाद का निकाला जाएगा समाधान : उपायुक्त रमेश घोलप

भुक्तभोगी भूस्वामी की पीड़ा सुन आँखों से छलक जाएंगे आंसू ।।

चतरा ( संजीत मिश्रा ): जिले में भूमि विवाद की समस्या लगातार गहराती जा रही है, जिसका मुख्य कारण अभिलेखागार (रिकॉर्ड रूम) में कर्मचारियों द्वारा किए गए अनियमित (फर्जी ) कार्य हैं। यही वजह है कि जिले के अधिकांश प्रखण्डों में भूमि विवाद में वृद्धि आई है। अभिलेखागार में कई भूमि स्वामित्व वाले दस्तावेजों को फर्जी तरीके से तैयार कर भूमाफियाओं को लाभ पहुंचाया गया है ।

उपायुक्त रमेश घोलप को जब मामले की जानकारी मिली तो उन्होंने गंभीरता को समझते हुए तुरंत संज्ञान लिया और दोषियों की पहचान कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए । इस सिलसिले में अभिलेखागार से कुछ माह पूर्व हटाये गए कार्यरत दो कर्मियों, इंद्रनाथ कुमार और अजीत कुमार सिन्हा, के खिलाफ स्पष्टीकरण जारी किया गया है। हालांकि, सूत्रों के अनुसार, इनका जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया है। इसके अलावा, इस घोटाले में कई अंचल अधिकारियों व राजस्व कर्मचारियों की संलिप्तता की भी जानकारी सामने आ रही है, जो जांच को और भी पेचीदा बना रही है। प्रशासन ने ऐसे सभी संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कदम उठाने की तैयारी शुरू कर दी है। अपर समाहर्ता अरविंद कुमार जमीन विवाद मामलों का निष्पक्षता से जांच कर दोषियों के विरुद्ध विभाग को लगातार लिख रहे है ।

इस मामले ने जिले में प्रशासनिक व्यवस्था और भूमि प्रबंधन प्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। उपायुक्त ने साफ कर दिया है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और जल्द ही इस विवाद का समाधान निकालने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

अभिलेखागार में भूमि कागजातों से छेड़छाड़ का सबसे अधिक दुष्प्रभाव गरीब मजदूरों और किसानों पर पड़ा है। ये वही वर्ग है, जो कठिन परिश्रम के बाद दो वक्त की रोटी जुटाने में संघर्षरत है। इन लोगों को न्याय के लिए कचहरी और समाहरणालय के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर इन गरीबों ने ऐसा क्या किया है, जिसकी सजा उन्हें इस प्रकार भुगतनी पड़ रही है?

अभिलेखागार के बाबुओं ने चंद पैसों के लालच में अपने कर्तव्य और ईमान को ताक पर रखकर भूमि दस्तावेजों में हेरफेर किया है। इसका परिणाम यह हुआ कि जमीनी विवाद बढ़ा हैं और न्यायालय व पुलिस पर दबाव भी। यह समस्या केवल प्रशासनिक या कानूनी नहीं है, बल्कि समाज के सामूहिक जिम्मेदारियों पर भी सवाल खड़ा करती है।

  1. भ्रष्टाचार का प्रभाव: सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा चंद पैसों के लिए अपने कर्तव्य का उल्लंघन कर गरीबों को भूमि स्वामित्व से वंचित करने का षड्यंत्र ।
  2. न्याय में देरी: गरीब किसान और मजदूर अपनी भूमि के अधिकार के लिए लगातार कचहरी और सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक और मानसिक स्थिति खराब प्रभाव पड़ा है ।
  3. विवादों में वृद्धि: दस्तावेजों में छेड़छाड़ के कारण जमीनी विवाद बढ़ते जा रहे हैं, जिससे पुलिस और न्यायालय पर भार बढ़ा है।
  4. भरोसे की कमी: सरकारी अभिलेखागार और न्याय प्रक्रिया पर से जनता का भरोसा कम हो रहा है, जो लोकतांत्रिक और सामाजिक व्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा है। भूमि दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ करने और कराने वालों के खिलाफ कठोर कदम उठाने की जरूरत है ताकि प्रशासन के न्याय प्रणाली पर लोगों का विश्वास कायम रहे ।

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