NGT की रोक के बावजूद मयूरहंड प्रखण्ड में धड़ल्ले से हो रहा बालू उठाव ।।

पुलिस देख भागे माफिया , नदी में फंसा ट्रैक्टर छोड़ लौटी पुलिस ।।

रिपोर्ट : संजीत मिश्रा/मालिक बाबू

चतरा । एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की सख्त पाबंदी के बावजूद चतरा जिले के मयूरहंड थाना क्षेत्र के पेंटादरी नदी घाट से अवैध रूप से बालू उठाव का सिलसिला थमा नहीं है। बुधवार को मयूरहंड पुलिस की दबिश के दौरान बालू लदे कई ट्रैक्टर नदी के दूसरी छोर पर खड़ा रहा जबकि एक ट्रैक्टर नदी में ही फंसा मिला। हैरानी की बात यह रही कि पुलिस ने फंसे ट्रैक्टर को भी निकालने का कोई प्रयास नहीं किया और वापस लौट गई।

खुला उल्लंघन : 10 जून से 15 अक्टूबर तक पूरी तरह प्रतिबंधित है बालू उठाव…

मालूम हो कि मानसून के दौरान 10 जून से 15 अक्टूबर तक नदियों से बालू उठाव पर NGT का स्पष्ट प्रतिबंध है। 2016 की बालू उत्खनन गाइडलाइन के अनुसार, बरसात में नदी तल से बालू निकालना पूरी तरह प्रतिबंधित है ताकि पर्यावरण संतुलन बना रहे और भू-जलस्तर प्रभावित न हो। इसके बावजूद माफिया बेखौफ हैं और स्थानीय प्रशासन की चुप्पी पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

पिछले छापेमारी में उजागर हुआ था बड़ा घोटाला…

कुछ महीने पहले ही राष्ट्रीय शान अखबार में मयूरहंड में प्रशासनिक मिलीभगत से हो रहे अवैध बालू उठाव और भंडारण पर खबर प्रकाशित होने के बाद उपायुक्त के निर्देश पर एसडीएम जहूर आलम के नेतृत्व में बड़ी कार्रवाई हुई थी, जिसमें हजारों CFT बालू जब्त किया गया था। लेकिन कार्रवाई का असर सिर्फ चंद दिनों तक ही दिखा। उसके बाद एक बार फिर माफिया सक्रिय हो गए।

वीडियो में दर्जनों ट्रैक्टर, प्रशासन पर उठे सवाल…

वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि दर्जनों ट्रैक्टर नदी किनारे बालू लोड करने खड़े हैं। इससे यह साफ जाहिर होता है कि पूरे क्षेत्र में सुनियोजित तरीके से अवैध खनन चल रहा है। तथा माफियाओं को राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है।

जलस्तर गिरने का संकट, लेकिन माफिया मालामाल…..

रोजाना सैकड़ों टन बालू की अवैध निकासी से नदी का अस्तित्व खतरे में है। भू-जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है और आने वाले वर्षों में पीने और सिंचाई के पानी की भारी किल्लत हो सकती है। लेकिन प्रशासन की कार्रवाई ‘मछली पकड़ो खेल’ से ज्यादा कुछ नहीं लगती—बड़ी मछलियों को छोड़, छोटी मछलियों पर कार्रवाई कर वाहवाही लूटने की पुरानी परंपरा जारी है।

प्रशासन की मौन स्वीकृति या मिलीभगत?…..

जब भी मीडिया में खबरें छपती हैं, दो-चार ट्रैक्टर पकड़ कर दिखावा किया जाता है, पर सवाल यह है कि बालू भंडारण करने वाले बड़े मगरमच्छों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं होती है ? क्या प्रशासन केवल दिखावे की कार्रवाई कर रहा है? क्या एक ट्रैक्टर पकड़ लेने से अवैध खनन रुक जाएगा?

कविता की चुभन में सच्चाई : “बलिदान ना देखा कभी शेर का, बलि बेदी पर बकरे चढ़ाए गए हैं,निर्बल ही बेचारे सताए गए हैं…” क्या यही न्याय है??

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *